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पृष्ठ:स्टालिन.djvu/९

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बांट लिया। यद्यपि इन संधियों को प्रकाशित नहीं किया गया, कितु राजनीतिज्ञा का विश्वास है कि इन संधियों के द्वारा इटली को उत्तरी अफ्रीका और यूनान दिये गए। जर्मनी को शेष अफरोका, तथा पश्चिमी यूरोप के वह सब प्रदेश दिए गए जो जार सम्राट के शासन में नहीं थे। रूस को प्राचीन जार सामाज्य के अतिरिक्त एशिया के मुस्लिम राष्ट्र भी दिए गए। भारत भी सम्भवतः रूस को ही दिया गया। जापान को चीन के कुछ भाग, फच हिंद, चीन, बर्मा, मलाया प्रायद्वीप और प्रशांत महासागर के द्वाप दिए गए। धुरी राष्ट्र का पिछली कार्यवाही भी इसी अनुमान को पुष्ट करती है और संभवत: इसीलिये भारत सरकार पेशावर को वायु थाक्रमण के लिये तयार कर रही है। कितु हमारी सम्मति में रूस के भारत पर आक्रमण करने की कोई संभावना नहीं है। स्टालिन एक अत्यन्त चतुर कूटनीतिज्ञ है। उसकी नीति दूसरों के लाभ में भाग लेकर मरा मराया शिकार खाने की है। वह फिनलड युद्ध को आनन्द ले चुका है। अतः अब वह अपने पुरुषार्थ से शिकार मारना नहीं चाहता। यद्यपि वह धुरी राष्ट्रा का मित्र है और बूिटेन का मित्र नहीं है, किंतु उसको जर्मनी द्वारा ब्रिटेन के हराए जाने का पूर्ण विश्वास नहीं है। वह तो एक तटस्थ राष्ट्र के समान विटेन और जर्मनी के द्वंद्व युद्ध को देख रहा है। यदि ब्रिटेन जीत गया तो स्टालिन ब्रिटेन से मित्रता कर लेगा अथवा यदि दुर्भाग्यवश बूिटेन हार गया और जर्मनी जीत गया तो रूस थके मांदे जमेनी से अधिक से अधिक प्राप्त करने के लिये दबाव तक से काम लेने में संकोच न करेगा। प्रस्तुत ग्रंथ में लेखक ने वर्तमान राजनीति से बिलकुल प्रथक रहते हुए स्टालिन के कूटनीति पूर्ण गत जीवन पर पर्याप्त प्रकाश मला है। लेखक ने इस मंथ में एक निष्पक्ष दर्शक के समान