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[ चौदह घटना याद आगई। उस समय उसने अपने साथ बाल्यकाल के कुछ आवारागर्द मित्रों की एक मण्डली ले रक्खी थी और उनकी सहायता से वह नदी-तटवर्ती फल-विक्रेताओं की दुकानों पर आक्रमण किया करता था। यदि किसी अवसर पर कोई व्यक्ति इन अल्प-बयस्क चोरों को देख लेता और इनका पीछा करता, तो यह रक्षा के लिये नदी के वेगपूर्ण पानी में कूद कर किसी ओर निकल जाते थे। इस समय उस नवयुवक विद्यार्थी के सामने एक अल्पवयस्क श्रावारागर्द लड़के का चित्र उपस्थित हुश्रा, जिसके मुख मण्डल पर भय के चिन्ह थे और जो एक हाथ में चोरी का खळूजा लिये पानी की लहरों को चीरता हुआ सामने के तट की ओर तीव्र गति से चला जा रहा था, जहां उसके साथी उत्सुक नेत्रों से उसके प्रागमन की बाट जोह रहे थे। पाठक समझ गये होंगे कि यह विद्यार्थी हमारा चरित नायक जोजेफ स्टालिन था, जिसका बाल्यकाल गोरी नामक बोटे से ग्राम में ( तफलस के निकट ) एक दरिद्र परिवार में व्यतीत हुआ था। उसका पिता रूस के दक्षिणी प्रदेश गजस्तान का एक दरिद्र और दुःखी किसान था, जो जन्म भर कठोर परिश्रम करने पर भी इस योग्य न हो सका कि अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता। उस गरीब की सारी आयु हल जोतते ही बीत गई । उसको भूमि अपनी उपज से उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति न कर सकती थी। अतएव साथ ही साथ उसे मोचीका कार्य भी करना पड़ता था। इस छोटे से निजेन ग्राम में भविष्य के स्टालिन का बाल्यकाल सोसो के नाम से व्यतीत हुआ। बाल्यकाल में ही वह इतना चम्बल, उद्धत और आवारागर्द लड़का था कि माम के बहुत से व्यक्ति उस से डरते थे और उसके समवयस्क