पृष्ठ:स्टालिन.djvu/१८

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-- सतरह ] अतएव सोसा को आयु चादह वर्षे को हाने पर उसे तफलस को धार्मिक पाठशाला में पता कर दिया। वहां उसका पूरा और असलो नाम लिखा गया जोजेफ दिसारिया। स्कूल अधिका- रियों ने उसे अपने यहाँ को कालो पोशाक पहना दो ओर ईश्वर जाने ! यह इस स्कूल को सुधार-त्रिय व्यवस्था का प्रभाव था अथवा काला पोशाक का असर था कि इस बदनाम शरारत लड़के में महान परिवर्तन हो गया। एक मास बाद सासा का पिता उसको माता को साथ लेकर पुत्र का दशा देखने उस धार्मिक संस्था में पहुंचा । संस्था के अधिकारी फादर वास्टा गोफ ने उनसे भेंट करना स्वीकार कर लिया। उस समय माता और पिता दानों के दिल धड़क रहे थे किन जाने अब कैसा बुरा खबर सुनने में आवेगी । किन्तु फादर वास्टो गोक ने हाठी हो हाठों में मुस्कराते हुए उन्हें संतुष्ट कर दिया । उस से यह जानकर उन दोनों के आश्चर्य की सीमा न रही कि जाज फ सभी विद्यार्थियों में असाधारण परिश्रमी प्रमाणित हुआ है और यदि उसकी शिक्षा इसी गति से जारी रही तो निसन्देह उसका भविष्य अत्यन्त उज्वल बनेगा। थोड़ी देर पश्चात् जब सोसो को उसके माता पिता के समक्ष लाया गया तो वह उस आवारागर्द लड़के में रूपान्तर देख कर आश्चर्यान्वित हो गए। उसकी आकृति पहचानी न जाती थी। लम्बे सूखे बाल जा मुर्गी के परों को तरह उठे से रहा करते थे, विधिपूर्वक छांटे हुए थे। वस्त्र काले थे, किन्तु बिल्कुल स्वच्छ ओर साफ । सब से बड़ी बात यह थी कि उसके हाथों पर मैल का चिन्ह तक न था। इतना ही नहीं, लड़के ने क्षणमात्र के लिये भो अपना आंखे ऊपर को न को। अपितु विनयपूर्वक अपना सिर झुकाप हुए माता पिता के सामने खड़ा