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[ सोलह सोसो के पिता बसारियन ने अपने लड़के को सुधारने के लिये सभी उपाय किये। प्रारम्भ में उसने मारपीट भी की, क्योंकि पुराने विचार के लोगों में बालक को सुधारने का यह एक प्रसिद्ध तरीका चला आता था। किन्तु उद्धत सोसो की अहं. मन्यता की यह दशा थी कि वह मुंह बन्द करके खूब मार खाता और उससे कभी शिक्षा ग्रहण न करता था। मारपीट के आधा घण्टा बाद ही वह कोई नई शरारत सोचने लग जाता। उसकी दयालु माता वैथरीन ने बहुतेरा प्रयत्न किया कि उसे समझा बुझा कर सत्य-पथ पर चलावे। किन्तु उसका परि म भी व्यर्थ ही गया। उसने लड़के को कई बार एकान्त मे ले जाकर उसके हृदय पर यह अंकित करने का पूर्ण प्रयत्न किया कि उसके यह हुष्प्रयत्न और छावासगर्दी वि सी स्मय मम्पृए कुटुम्ब की विपत्ति का कारण, बगे। परन्तु पिता की कटोरता वी भान्ति माता की विनम्रता और प्रेरणा भी व्य ही जाती थी। थोड़ी सी देर के पश्चात हः सोसो अपनी रि के बालकों को साथ लेकर किसी नवीन आक्रमण की तय्यारी में संग्लन हो जाता। उसने बाल्यकाल मे ही लोगों पर छातङ्क पैदा कर दिया था। जब वह अपनी सेना सहित गलियों में से गुजरता तो दुकानदार और खोंचे वाले दुकाने बन्द कर लेते अथवा सुरक्षित स्थानों में चले जाते। उन्हें भय रहता था कि कहीं यह सेना उन पर अत्याचार का बाजार गर्म न कर दे। बेचारा पिता अपने मित्रों और सम्बन्धियों से पूछता कि इस पद्धत-बालक का भविष्य कैसा होगा एवं उसके र.धार का क्या उपाय हो सकता है ? भन्तिम विचार उसके मस्तिस्क में यह आया कि उसके जीवन को सुधारने के लिये से किसी धामिक पाठशाला में प्रविष्ट कर दिया जावे।