सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:स्टालिन.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सैंतीस ] [ *** अन्धेरे बाजार में एक नौकरी कर ली और थोड़े समय के लिये इस सत्य को बिल्कुल विस्मृत-सा कर दिया कि किसी समय यह एक धार्मिक विद्यार्थी रह चुका है। उसने निरन्तर कई मास तक एक व्यापारी के यहाँ नौकरी की। उस व्यापारी का कारोबार जैदग मज ब्रादर्स के नाम से चलता था। जोजफ प्रति दिन बहुव प्रात: उठ कर दूकान में मान ले जाना। दिन भर और रात्रि क भारम्भिक भाग में खड़े २ दुकान का काम करता । इसके पश्चात् थका मान्दा अन्धेरे बाजार के अन्य कर्मचारियों के साथ घर लौट आता था। इस प्रकार कुछ मास तक स्वयं अनुभव कर वह अपने साथियों के कष्टों को जानने में सफल हो गया। इसके पश्चात् घटनाएं आश्चर्यजनक गति के साथ घटनी आरम्भ हुई। एक दिन उसने अपने स्वामी से वेतन वृद्धि के लिये विनय की। न केवल विनय, अपितु, उसने आग्रह किया कि मुझे अधिक वेतन जरूर मिलना चाहिये। यह ऐसी कार्यवाही थी जो पहले कभी देखने में नहीं आई थी। स्वामी की तो क्या बात, अन्य कर्मचारी भी उसका साहस देखकर दांतों तले अंगुली दबाने लगे। प्रत्येक व्यक्ति आश्चर्य चकित होकर सोचता था कि यह विचित्र कर्मचारी है। इसे यहां कार्य करते केवल कुछ ही मास हुए हैं और इतने शीघ्र वह अपने वेतन से असंतुष्ट हो गया इसकी यह दशा है, उधर वर्षों से कार्य करने वाले उसी वेतन पर काम किये चले जारहे हैं। बैदिग मज ब्रादर्स के अध्यक्ष ने जब इस विचित्र निवे. दन को स्ना तो उसने पुराने ढर्रे पर कार्य करते हुए धृष्ट नवयुवक को उसी समय नौकरी से प्रथक कर दिया। इसके कुछ दिन पश्चात् अन्धेरे बाजार के बीस हजार कर्मचारियों में एक प्रबन