पृष्ठ:स्टालिन.djvu/४६

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13 [पैंतालिस अपनी श्रेणि के अन्य नेताओं से करूं तो कहना पड़ेगा कि वह उन सबसे बढ़-चढ़ कर था।" मजे की बात तो यह थी कि इस छोटे से ग्राम में उसकी प्रत्येक बात पर निगरानी रक्खी जाती थी। जो पत्र वह लिखता अथवा जो पत्र उसके पास आता, वह सब स्थानीय पुलिस की पड़ताल के पश्चात् इधर उधर होने पाता था। फिर भी वह किसीन किसी प्रकार लेनिन के साथ पत्र व्यवहार करने का अवसर पैदा कर ही लेता था। इस समय स्टालिन गुप्त क्रान्तिकारी आन्दोलन का केवल एक छिपा सिपाही था। वह साम्यवादी श्रेणि के संगठित रूप से बहुत दूर था। यही कारण था कि स्टालिन सोधे तौर से लेनिन के नाम पत्र लिखने का भी साहस न कर सकता था। उसने अपनी चिट्ठी एक ऐसे व्यक्ति के नाम भेजी जो लेनिन का मित्र था और लंदन में रहता था। युवावस्था का यह लेख बड़े उत्तेजनापूर्ण शब्दों में लिखा गया था। उससे कुछ पंक्तियां नीचे उद्धृत की जाती हैं। "लेनिन उस पर्वत के समान है जिसकी चोटी अन्य पर्वतों से ऊँची है। वह वीरों में ऐसा वीर है, जो युद्ध से कभी नहीं डरता। वह अपनी श्रेणी को निर्भयतापूर्वक उस रास्ते पर ले जा रहा है जिस पर उस से पूर्व किसा रूसो क्रान्तिकारी को पग धरने का साहस भी नहीं हुआ।" साइबेरिया में बन्दियों को अपने पत्र का उत्तर खुफिया पुलिस की मार्फत प्राप्त करने में महीनों लग जाया करते थे। इस पत्र को गए कई मास गुजर गए। एक दिन स्टालिन के नाम दो चिट्ठियां प्राप्त हुई। एक उस लन्दन-स्थित मित्र की और दूसरी स्वयं लेनिन की थी। लेनिन द्वारा लिखित पत्र संक्षिप्त था, किन्तु वह क्रियात्मक एवं दूरदर्शितापूर्ण शिक्षाओं