पृष्ठ:स्टालिन.djvu/४५

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[चवालीस साइबेरिया में कालेपानी भेज दिया गया। निर्वासितों की जो नम्बी श्रेणी साइबेरिया भेजी जाती थी, वह प्रसन्नता पूर्वक उस में सम्मलित हो गया। कई हजार मील की पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। अन्य व्यक्ति होता तो अपने भयानक भविष्य को देख कर दुःख से अधमरा-सा हो जाता । किन्तु नवयुवक जोज के को इस बात का हर्ष एवं गौरव था कि अब इस सम्मान को पाकर वह भी अपने अन्य साथियों जैसा हो गया। भविष्य में वह भी गर्व के साथ कह सकेगा कि मैं भी निर्वासित की कठोर परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुका हूं। पूर्वी साइबेरिया के इस छोटे से ग्राम में जहां क्रांतिकारियों को भेजा गया था एक ऐसी घटना हुई जिसके विषय में रूस के भावी डिक्टेटर ने कई अवसरों पर कहा है कि यही वह घटना थी जिसने उसके जीवन पर अपूर्व प्रभाव डाला। वह घटना यह थी कि यहां उसकी मुलाकात अपने गुरू लेनिन से हो गई। स्टालिन ने उसका वर्णन अपने शब्दों में इस प्रकार किया है- "लेनिन से मेरी पहली मुलाकात सन १९०३ में व्यक्तिगत रूप से नहीं, अपितु, पत्र द्वारा हुई थी। उस मुलाकात की अमिट याद मेरे हृदय में अभी तक शेष है। मुझे साइवेरिया निर्वा. सित कर भेज दिया गया था । वहां मुझे लेनिन के क्रांति- कारी भान्दोलन के अध्ययन के लिये अच्छा अवसर प्राप्त हो गया। वैसे तो मैं गत शताब्दी के अन्तिम दिनों से ही उसके आन्दोलन को देखता चला आता था, लेकिन जब मैंने सन् १९०१ से जब कि 'अस्करा' पत्र प्रारम्भ हुआ था-इस आन्दो. लन को देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ। मुझे ज्ञात हुआ कि वास्तव में वह कोई असाधारण व्यक्ति है। मेरी दृष्टि में वह केवल एक लेणी का नेता ही नहीं था। यदि मै उसका एक्काबला