उनचर] [ *** करने की बजाय उसका चित्र संसार के सब से बड़े देश-द्रोहियों के चित्रालय में लगाया गया। मालोनोस्को का रहस्य उद्घाटन कान्ति के उस काल में हुआ था जब किसी भी भादमी के लिये देश से बच कर निकल जाना संभव न था। अब स्टालिन को सात हुमा कि मानीनोस्की ने ही उसका भेद प्रगट किया था और निसन्देह वही उसके विगट जीवन से पूरी तरह परिचित था। दोनों इकट्ठ रहा करते थे। स्टालिन को स्वप्नमें भी यह विचार नहीं हो सकता था कि उसका एक घनिष्टतम मित्र उसके ही वक्षस्थल पर वार करने को तयार हो जावेगा। वस्तु स्थिति का यथार्थ ज्ञान होने पर क्रान्तिकारियों को एक छोटो टुकड़ी स्टालिन के नेतृत्व में मालीनोस्की की खोज करने लगी। यद्यपि उन लोगों ने सब कुछ छान मारा, परन्तु मालीनोस्की का कहीं पता न चला। ईश्वर हो जाने कि उसका क्या हुआ। सम्भव है किसी ऐसे व्यक्ति ने जिसको सजा दिलाने में उसका हाथ रहा हो उसको भगाते हुए देखकर मार डाला हो। उसके सम्बन्ध में एक अन्य कल्पना भी की जा सकती है। सम्भव बदन्न कर रूसी सीमा से निकल जाने में सफल हो गया हो और अब तक पेरिस या लन्दन में किसी एकान्त स्थान में शान्त जीवन व्यतीत कर रहा हो। वह वेश