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पृष्ठ:स्टालिन.djvu/८३

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बयासी] गुरु लेनिन के सामने यह सिद्ध करने का प्रयत्न करता कि ट्रॉद्स्की इस उत्तरदायित्व पूर्ण पद के लिये सर्वथा अयोग्य है। सन् १९२३ में लेनिन पर बीमारी का प्रथम बार कठोर आक्रमण हुमा। वह जानता था कि रोग भयानक है। परन्तु वह आश्चर्यजनक साहस और उपेक्षा के साथ उस दिन को भुलाता रहा, जब उसे विवश होकर उस भव्य भवन से बिदा होना पड़ता, जिसे उसने वर्षों के अनवरत परिश्रम से तयार किया था। उसने जिस वीरता से शत्रुओं का मुकाबला किया था, उसी साहस और उत्साह से मृत्यु से भी युद्ध किया। उसने उत्साह-वद्धक ढंग पर स्पष्ट कहा था। “यद्यपि मैं मृत्यु से नहीं बरता, तथापि मरने से डरता हूँ।" उसके कथन का भाशय यह था कि अभी उसके मरने का समय नहीं आया था और वह समय से पहले इस संसार से विदा हो गया तो उसके उत्तराधिकारी पारस्पारिक वैमनस्य से उसके पैदा किये हुए उन सुन्दर परिणामों को नष्ट कर देंगे, जिन्हें उसने महान् प्रयत्न के पश्चात् क्रांति की बदौलत प्राप्त किया था। मृत्यु से दो वर्ष पूर्व लेनिन ने अपनी पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के नाम एक पत्र लिखवाया, जो एक प्रकार से उसके राजनीतिक वसीयतनामे का स्थान रखती है। यह पत्र इस उद्देश्य से लिखा गया था कि उसकी बनाई हुई संस्था, उसकी मृत्यु के साथ ही समाप्त न हो जावे। इस पत्र ने अब एक ऐतिहासिक हस्तलेख का स्थान प्राप्त कर लिया है। उसमें सर्वे प्रथम उल्लेखनीय बात यह है कि लेनिन ने जिन दो व्यक्तियों को अपना उत्तराधिकारी नियत किया, वह यही दो प्रतिद्वन्द्वी स्टालिन और ट्रॉट्स्की थे। इन दोनों की नियुक्ति इस दृष्टि से विशेष महत्व रखती है कि जीनोवीक और कामानीक जैसे कई प्रसिद्ध