पिच्चासा] ट्रॉट्स्की ने अपने संस्मरण में लिखा है "मुझे पीठ की पोड़ा रहता थो। अत: मैं इन दिनों रोग-शय्या पर पड़े रहने के लिये विवश था। उसने अपनी बीमारी को इतना भयानक बत- नाया कि वह टेलीफोन पर वार्तालाप भी न कर सकता था। किन्तु दूसरी मोर स्टालिन ने अपना कार्य पूरी शक्ति के साथ जारी रखा। उसने बारी २ से केन्द्रीय कमेटी के प्रत्येक सदस्य से मिलकर उन्हें सभो उचित अनुचित बातं सुझाकर अपना समर्थक बना लिया। परिणाम यह हुआ कि जब ट्रॉट्स्की रोग- शय्या से उठा और उसने दल के कार्यकर्तामों पर रष्टि गनी 'तो नई २ सरते आंखों के सामने आने लगों। लेनिन की मृत्यु के पश्चात् इन दोना शक्तिशानो प्रतिद्वन्द्रियों में पुनः संघर्ष बढ़ गया। ट्रॉट्स्की ने जनता को स्टालिन के विरुद्ध करने का प्रयत्न भारम्भ कर दिया। दूसरी ओर स्टालिन दल की कार्यकारिणी कमैटो का विश्वस्त सदस्य था और इसीलिये उसकी पाक रूस का पथ-प्रदर्शन करने वाले सभी समाचार पत्रों पर पो । ट्रॉट्स्की की शक्ति को नष्ट करने का उसने भी भारी प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया। उसके यह प्रयल ठीक उसो प्रकार के थे जैसे कि उसने बार-शासन को मिटाने के लिये किए थे। उसे इस कार्य पर असाधारण ध्यान केन्द्रित करना पड़ा, क्योंकि ट्रॉद्स्को के सम. थेक बड़ी संख्या में थे। लेनिन के पश्चातू रूसो मोठों पर उसो का नाम पाया जाता था। ट्रॉट्का ने जब यह परिस्थिति देखी, वो वह भी बदला लेने के प्रत्येक प्रकार के अत्याचार के लिये तयार हो गया । उसने समाएं की, पत्र प्रकाशित किये और विरोधो-पक्ष का एक दल बनाया, जिसमें लाखों व्यक्ति सम्मिलित हुए। यपि स्टालिन अपने स्थान पर रखवा-पूर्वक बमा हुणा
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