[बयासी था, कितु उसे अनुभव करना पड़ा कि उसका मुकाबला एक ही व्यक्ति अथवा उसकी सम्पत्ति एवं वीरता से नहीं है, वरन् उसे ट्रॉदाको द्वारा निर्मित व्यवस्था को ही नष्ट करना होगा। दुर्भाग्य वश दाँदरकी ने इस भेव को नहीं समझा कि उसके असंख्य सहयोगियों में केवन ऐसे ही व्यक्ति नहीं हैं जो उसको स्टालिन के स्थान पर मारूद करना चाहते हैं, अपितु ऐसे व्यक्ति भी हैं जो सोवियट के दुश्मन हैं और महसूस करते हैं कि वह नाल मार्शल की छाया में सोवियट पर खुल्लमखुल्ला आक्रमण कर सकेंगे। इसी भूल तथा असावधानी का यह परिणाम हुआ कि ट्रॉट्स्की के अभ्युदय के दिन पूरे हो चने और एक दिन वह पाया कि उसे रूस से निर्वासित होना पड़ा। कालचक की यही गति है कि जिस व्यक्ति ने अपने यौवन काल में रूसी क्रान्ति में पूरा बल लगाया, जिसने जार के शासनकाल में सबसे अधिक विपत्तियां झेली, अब उसी महान त्यागी को क्रान्ति-काल में फिर साइबेरिया के भयानक मैदानों की हवा खानी पड़ी। कितु बह निर्वासित होकर भी अपने आन्दोलन का संचालन करता रहा। उसके पास मास्को से हजारों पत्र जाते, जिनका उसको उत्तर देना पड़ता। वह समाचार पत्र प्रकाशित करता। चीनी सीमा के पास उस छोटे से गांव में रहता हुआ जहां उसे नजरबन्द किया गया था-वह मास्को और सेंट पीटर्स- बगे में होने वाले जल्सों की व्यवस्था तक स्वयं करता था। वह बार २ इस बात पर बल देता था कि लोग देखें कि उसके क्रियात्मक कार्यों और स्टालिन के सिद्धान्तों में कितना भारी अन्तर है। जिस क्रान्ति को विजय रूस में हो चुकी थी उसकी स्थापना कब तक हद नहीं समझी जा सकती थी अब