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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१०४

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मालूम होती दीखती हैं। दुर्भाग्य से इंगलैण्ड की स्त्रियों की कृत्रिमता इतनी बढ़ गई है कि उनके जो विचार लेखों के द्वारा प्रकट होते हैं उनमें अपने निज के अनुभव और स्वावलोकन की मात्रा बहुत ही कम होती है, और दूसरों से पाये हुए उधार ज्ञान का और बाहरी संस्कारों का भाग ही अधिक होता है। यह तरीका धीरे-धीरे कम ज़रूर होगा, पर समाज-संगठन में जब तक फेर-फार न होगा, पुरुष प्रकृत शक्ति की परीक्षा जितनी स्वाधीनता से कर सकते हैं, उतनी ही स्वाधीनता और उतने ही साधन जब तक स्त्रियों को न मिल जायँगे तब तक यह तरीक़ा भी नष्ट न होगा-किसी न किसी रूप में बना ही रहेगा। जब ऐसा समय आ जायगा, अर्थात् स्वाधीनता-पूर्वक स्त्रियों की बुद्धि-विकाश के सब साधन सुलभ हो जायँगे, तथा अपने हार्दिक विचार यथेष्ट रीति से प्रकट करने की पूरी स्वाधीनता जब उन्हें मिल जायगी- उस ही समय स्त्री-स्वभाव का वास्तविक ज्ञान हमें मिल सकता है और अन्य बातों की व्यवस्था भी उस ही समय उसके अनुसार की जा सकेगी, इससे पहले नहीं।

२३-इतना समय इस विषय के निरूपण में लिया गया है कि स्त्रियों के वास्तविक स्वभाव को समझने में पुरुष अक्षम है,-अन्य विषयों के समान इस विषय में भी पुरुष जो सिद्धान्त बना चुके हैं वह निर्मूल अतएव अनुमान से बढ़ कर नहीं हो सकता। स्त्रियाँ किन-किन कामों के योग्य हैं

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