और किन-किन के अयोग्य है, तथा व्यवहार में उन्हें कितने हक़ दे देना योग्य और लाभदायक है-इन सब बातों का निश्चय करने के लिए जिस यथार्थ ज्ञान के सम्पादन करने की ज़रूरत है उसके योग्य साधनों के अभाव के कारण पुरुष को इस आवश्यक और अत्यन्त महत्त्व के विषय का ज्ञान प्राप्त होना सम्भव नहीं। यदि वास्तविक रीति से देखेंगे तो पुरुषों को इसका कहुत ही कम ज्ञान है, किन्तु पुरुष ऐसा
ढोंग करते हैं मानो उन्हें इस विषय का पूरा ज्ञान है। जब तक इसी प्रकार की स्थिति बनी रहेगी तब तक इस विषय पर जैसा चाहिए वैसा विवेचन होना ही सम्भव नहीं। यह हर्ष का विषय है कि, संसार में स्त्रियों का स्थान कौनसा है इसका निश्चय करने के लिए इस प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। क्योकि वर्त्तमान समय की समाज-व्यवस्था पर दृष्टि रखते हुए यदि इस विषय पर विचार करेंगे तो मालूम होगा कि इसका निर्णय स्वयं स्त्रियों को ही करना चाहिए। समाज में अपना स्थान कौनसा है, इस प्रश्न का निर्णय स्त्रियों को अपने अनुभव और अपनी बुद्धि से करना चाहिए। कोई एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों का समुदाय क्या-क्या करने के योग्य है, इसका निर्णय करने वाला केवल एक ही साधन है, और वह यह है कि उसे उसके मनचाहे काम के करने की आज्ञा देनी-उसे अपनी आज़माइश करने की स्वाधीनता देनी। इसके सिवा अन्य किसी भी उपाय से
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