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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१०७

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दया-दृष्टि रक्खो और उन्हें प्रोत्साहन दो। माँगना सिर्फ यह है कि तुमने प्रत्येक काम में पुरुषों को जो विशेष अनुकूलता कर दी है, उसे रद्द कर दो। जिन स्त्रियों की बुद्धि ऐसी होगी जो अन्य कामों और अन्य प्रवृतियों में विशेष चल सकती होंगी, तो स्वाभाविक रीति से वे उन प्रवृतियों की ओर विशेष लक्ष्य देंगी, उन कामों में सबसे अधिक भाग लेंगी, इसके लिए क़ानून बनाने की ज़रूरत नहीं है और समाज के द्वारा नियम निश्चित करने की भी आवश्यकता नहीं है। अनियंत्रित स्पर्द्धा के नियम के अनुसार जिस काम की ओर स्त्रियों की प्रवृति अब से अधिक होगी, अर्थात् जिसे स्त्रियाँ सबसे अधिक पसन्द करती होंगी, उस काम को केवल अपने ही अधिकार में कर लेने के लिए वे अपने आप अधिक उत्सुक होगी; और यह बात तो स्पष्ट ही है कि स्त्रियाँ जिस काम के सर्वथा योग्य होंगी, उसे ही वे सब से अधिक पसन्द करेंगी। इस तरह काम का बँटवारा हो जाने पर अर्थात् स्त्री-पुरुषों के बीच इस प्रकार काम का विभाग हो जाने पर दोनों की बुद्धि केवल समाज के हित की ओर झुक जायगी-यह निर्विवाद है।

२५-स्त्रियों के विषय में पुरुष-वर्ग का सामान्य सिद्धान्त यह है कि प्रकृति से स्त्रियों के लिए दो कर्त्तव्य निश्चित हुए एक पत्नी के रूप में और दूसरा मातृ-रूप में। किन्तु समाज की जो प्रस्तुत व्यवस्था है, तथा व्यवहार में मनुष्यों का