सार उनका योग्य वेतन देने की बात सबसे पहले कही। एक दूकानदार की नौकरी करने पर उसे जो वेतन मिल सकता है, उतना ही वेतन उसे तुम्हारी नौकरी करके भी प्राप्त होना चाहिए। इस प्रकार करने से दूसरे कारखाने वालों को जैसे मज़दूर मिलने में दिक्कत नहीं होती वैसे ही तुम्हें भी न होगी।" इसका जवाब क्या हो सकता है? "ऐसा करने की हमारी इच्छा नहीं है" बस, यही उत्तर है। पर इस समय दीन मनुष्यों की रोज़ी पर पत्थर फेंकते हुए लोगों को दया आती है, तथा यह करने की उनकी इच्छा भी नहीं
होती-इसलिए यह रीति बन्द होगई। जो लोग स्त्रियों के जीवन-निर्वाह के तमाम रास्तों को बन्द करके केवल एक विवाहित मार्ग ही खुला रखना चाहते है, वे भी इसी अपवाद के पात्र हैं। स्त्रियों को इस प्रकार पराधीन बनाये रखने के लिए जो समर्थन किया जाता है उसका साफ़ मतलब यह ज़ाहिर होता है कि पुरुष ऐसा कुछ नहीं करते जिससे स्त्रियों को विवाहित दशा अपने आप ही पसन्द हो, और इसीलिए स्त्रियों की दृष्टि में ऐसी कोई बात इस स्थिति के विषय में नहीं आती कि जिससे वे स्वयं इसके पक्ष में हों। यदि हम किसी मनुष्य को कुछ इनाम देने को कहें और साथ ही उसे यह भी बता देवें कि "लेना हो तो यह ले, नहीं तो और कुछ न मिलेगा," तो इसका मतलब यह होता है कि हम जो इनाम दे रहे हैं वह खुद हमें ही अच्छा नहीं लगता;
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