कदाचित् कोई यह कह सकता है कि स्त्री पुरुष का सम्बन्ध यदि अत्याचार की ही नींव पर स्थापित किया गया है तो, बहुत बार उन में जो अलौकिक प्रेम दिखाई दे जाता है, वह कैसे सम्भव हो सकता है? तो इसका उत्तर केवल यही है कि ग़ुलामी के इतिहास में भी ग़ुलाम और मालिक की वफ़ादारी के ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाते हैं। रोम और ग्रीस के इतिहास में बहुत से ग़ुलामों ने अपने मालिकों को विश्वासघात करके फँसाने की अपेक्षा उनके बदले ख़ुद अपनी जान दी है, ऐसे उदाहरण बहुत मिलते हैं। ग्रीस और रोम के आन्तरिक विग्रहों (civil wars) में बड़े-बड़े आदमियों को देहान्त-दण्ड, देश-निकाले आदि की सज़ा हो जाती थी। ऐसे नाज़ुक मौक़ों पर बेटों ने अपने बापों को फँसवा दिया है, किन्तु स्त्रियों और ग़ुलामों ने ऐसे अवसरों पर अचल स्वामिभक्ति और विलक्षण धैर्य्य दिखाया है-ऐसे उदाहरणों से इतिहास के पृष्ठ भरे पड़े हैं। इतना होते हुए भी, उन्हीं इतिहासों में उन्हीं ग्रीकों, रोमन लोगों के द्वारा
ग़ुलामों पर घोर अत्याचार होने की बात लिखी है। पर इस पर आश्चर्य करने की कोई बात नहीं है; क्योंकि जहाँ कड़ी से कड़ी रूढ़ियाँ प्रचलित होती हैं, वहीं स्वामिभक्ति, पति-निष्ठा, अनन्य प्रेम आदि तीव्र मनोधर्म भी अपने आप फूट निकलते हैं। इस संसार में जो अनेक प्रकार की विलक्षण बातें हैं, उन में से ही एक यह भी है कि जिन मालिकों के
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