पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१२७

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हाथ में सम्पूर्ण सत्ता होती है और वे अपने अधिकार को भयानक कड़ाई से काम में न लाकर सह्रदयता और मनुष्यता से काम में लाते हैं तो उनके अधीनस्थों में जैसी भक्तियुक्त कृतज्ञता उत्पन्न होती है, वैसी अनन्यभक्ति और कहीं देखने को नहीं मिलती। बहुतों की धार्मिक निष्ठा में यह भावना बड़ी प्रबल होती है, और इसका हम विचार ही न करें तो अच्छा है। क्योंकि हम देखते हैं कि, पड़ोसियों की अपेक्षा मुझ पर ही परमेश्वर की कृपा विशेष है, यही विचार करके बहुत से लोग परमेश्वर का आभार मानते हैं।

जिस रूढ़ि या जिस विचार की रक्षा करनी होती है वह चाहे ग़ुलामी हो, चाहे अनियन्त्रित राजसत्ता हो, या कुटुम्ब के अगुआ की अनियन्त्रित सत्ता ही हो-उसके हिमायती उसके अच्छे-अच्छे उदाहरण सामने रख कर उस रूढ़ि की योग्यता और न्यायपुरस्सरता सिद्ध करने को तैयार हो जाते हैं। उनके प्रतिपादन करने की शैली इस प्रकार होती है,-"अहाहा देखोओ, अमुक-अमुक अनुष्य अपने अधिकारों को कितने सदय अन्तःकरण से पूरा करते हैं, और उनके अधीनस्थ जन उनके प्रति कितना प्रेम और नम्रता प्रकट करते हैं, ये सेव्य पुरुष प्रति दिन ऐसा ही काम करते हैं जिससे उनके आश्रितों का भला हो। और उनके सेवकों की मुखाकृति सदैव कैसी प्रसन्न बनी रहती है, मानो अपने मालिकों की मङ्गलकामना करते हों!!" पर यदि कोई यह प्रतिपादन