पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१३

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इस प्रकार हिन्दू-धर्म्मशास्त्रो के अनुसार हिन्दू नीतिके अनुसार और प्रचलित हिन्दू-गृहस्थ-व्यवहार के अनुसार यदि स्त्रियों के दुर्भाग्य का चित्र खींचा जाय तो सैंकड़ों पृष्ठों में भी उसका पूरा होना सम्भव नहीं। स्त्रियों के विषय में प्रचलित छोटी-मोटी कुरीतियों की तो संख्या ही सैकड़ों पर है। स्वयं हमारी जाति में ठहरौनी की प्रथा प्रचलित है, जिसमें कुलीन मातापिता लड़की के मातापिता से ठहरा कर धन लेते है। सती स्नेहलता के समान अनेक देवियां इस प्रथा पर बलि हो चुकीं, पर अब भी यह प्रचलित है-इससे बढ़ कर रुढ़ि की उपासकता का और क्या उदाहरण होगा? हमारे देश के वैश्य समाज और विशेष कर जैनसमाज में रुपयों से ख़रीद कर ही लड़कों का ब्याह किया जाता है, उक्त दोनों समाजों में ऐसे हज़ारों व्यक्तियों की तादाद है, जो आजीवन इसी असंगतता के कारण अविवाहित रहे हैं। एक ओर मर्दुमशुमारी की रिपोर्ट में ऐसे अंकों की संख्या हज़ारों हैं जिनमें एक वर्ष के बालक बालिकाओं का विवाह हुआ है। ऐसी सैंकड़ों मोटी-मोटी कुरीतियां हैं। इन सब दुर्गुणों से घिर कर हिन्दू-गृहस्थों का व्यक्तिगत जीवन आनन्दप्रद होना असम्भव है। ऐसी स्थितियों से घिरे हुए हिन्दुओं का जीवन सुधरना नामुमकिन है।

इन सब कुरीतियों की गठरी अपने सिर पर लादे हुए हिन्दू-समाज उन्नति की ओर अग्रसर नहीं हो सकता।