पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१४

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जिनका घर सुधरा हुआ नहीं उनके लिये बाहर कुछ सुधर ही नहीं सकता। उनके सभी क्षेत्र संकुचित होंगे-फिर चाहे वे सामाजिक हों या राजनैतिक। हम यह नहीं कह सकते कि राजनैतिक सुधार होने पर सामाजिक सुधार हुआ करते हैं या सामाजिक होने पर राजनैतिक, किन्तु यह बात निश्चित और ध्रुव है कि एक का सुधार चाहने वालों को दूसरे का सुधार करना ही होगा। इसमें जितनी देर होगी उतनी ही समाज की हानि होगी। फिर हिन्दू-समाज में समाज से सर्वथा बहिष्कृत 'विधवाओं' की ख़ासी तादाद है, जिन्हें हम उपेक्षा की दृष्टि से देखते है। पर यह प्रकृति का नियम है कि जिससे लाभ नहीं होता उससे हानि अवश्य होती है। उस हानि से तभी बचा जा सकता है जब उसे लाभ के रूप में बदला जाय अन्यथा हानि अवश्यम्भावी होती है। मैल लग जाने पर जैसे शरीर मोटा न होकर कृश और कदर्य होता है वैसे ही विधवाओं की उपेक्षा करके भी हिन्दू-समाज उनकी हानि से नहीं बच सकता। इसका बुरा परिणाम समाज के लिए अवश्यम्भावी है। हिन्दू-समाज को अपने शास्त्रों का चाहे जितना अभिमान हो किन्तु वह इस हानि से नहीं बच सकता। और एक अग्रशोची मनुष्य उन शास्त्रों को साष्टाङ्ग नमस्कार किये बिना नहीं रह सकता जिन्हों ने विधवा की दशा ऐसी बना डाली है:-