"कमज़ोर ख़ाविन्द औरत पर शेर" वाली कहावत के अनुसार अपनी दीन स्त्री पर अपना बुख़ार उतारते हैं; उसे हर तरह से तङ्ग और हैरान करने में उन्हें प्रसन्नता प्राप्त होती है; क्योंकि उन्हें इस बात का विश्वास होता है कि उस में अपना सामना करने की ताक़त नहीं है, और वह उनके हाथ से छूट भी नहीं सकती। उन मनुष्यों के मनों में इस प्रकार के विचार तो आते ही नहीं कि यह बिचारी अबला सब प्रकार
से निराधार है और हम सब प्रकार से स्वाधीन हैं, उसके जीवन का सब कुछ आधार हमीं पर अवलम्बित है और उसका जीवन विश्वास के साथ हमारे हाथ में आया है, इसलिए उसके प्रति उदारता, सहृदयता और प्रेम से बर्ताव करना और अपने आवेश के अंकुश को अपने वश में रखना हमारा कर्त्तव्य है-इसे तो वे सोचते ही नहीं, बल्कि उस बिचारी को वैसी निराधार स्थिति देख कर उनका मन सङ्कुचित होने के बदले उलटा दुष्टता धारण करता, और वे इस प्रकार के विचार करते हैं कि,-"यह मेरी निजू चीज़ के समान है, मै इसका जैसे चाहूँ वैसे उपभोग कर सकता हूँ-क़ायदे-क़ानून सब मेरे पक्ष में हैं। अन्य अपनी बराबर वाले या साधारण लोगों से भी जितनी नम्रता और सभ्यता दिखाई जाती है, उतनी नम्रता और सभ्यता से भी उसके साथ पेश आने की क्या ज़रूरत है।" कुटुम्बों के भीतर इस प्रकार के अन्याय चर्म्मसीमा पर पहुँचे रहने पर भी क़ानून उनका कोई निपटारा
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