प्रथा के दुरुपयोग से कितनी विशाल मनुष्य-जाति पर भयङ्कर अत्याचार हो रहा है। किन्तु ऊपर वाला उदाहरण अत्यन्त नीच या अधमाधम श्रेणी वाले मनुष्यों का है। इन्हें तो यदि संसार का कूड़ा कहें तो कोई अत्युक्ति न होगी; किन्तु इनसे कुछ उच्च, और उनसे फिर कुछ उच्च, इस प्रकार नीचे वाले वर्ग से कम निन्द्य और कम भयङ्कर मनुष्यों की संख्या सब से नीच अर्थात् अधमाधम और सब से उच्च अर्थात् उत्कृष्ट वर्ग वाले मनुष्यों से बहुत अधिक है। कुटुम्ब हो चाहे राज्य हो; एक मनुष्य के हाथ में बिना किसी रोक-टोक के तमाम की तक़दीर सौंप देने से, उस अधिकार का अमानुषी लाभ उठाने के लिए जो नर-राक्षस समय-समय पर प्रकट हो जाते हैं, उस ही समय अनियन्त्रित सत्ता का सच्चा रूप जान पड़ता है; उस
समय ऐसा मालूम होता है कि यदि सत्ताधीश अपनी सत्ता का पूरा-पूरा उपयोग करना चाहे तो संसार का ऐसा कोई निन्द्य काम नहीं है जो वह कर न सके। और छोटे-मोटे निन्द्य और भयङ्कर काम सत्ताधीश कितने करते हैं, इसका अन्दाज़ा तो बड़ी सरलता से हो सकता है। संसार में जिस प्रकार देवता के समान साधु पुरुषों की संख्या बहुत ही कम होती है, उसी प्रकार पिशाच और राक्षस के समान अधमाधम
मनुष्यों की संख्या भी कम होती है। पर प्रसङ्ग आने पर जो सहज ही कड़े और नरम बन जायँ और हार्दिक भावों को छिपा कर प्रसङ्ग के अनुसार भाव बना लें, ऐसे मनुष्यों की
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