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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१३५

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होना चाहिए-यह निस्सन्दह है। लोग कहते हैं कि उत्तम कुटुम्ब, सहृदयता, सहानुभूति, पर-दुःख-कातरता आदि उत्तमोत्तम गुणों का सबसे अच्छा स्थान घर है; यद्यपि अधिक अंशों में यह बात सत्य है, पर इसके साथ ही यह बात भी ध्यान में होनी चाहिए कि प्रत्येक कुटुम्ब में कुटुम्बी नेता के अन्तःकरण पर ही कुटुम्ब की रचना होती है। उस ही से गृहस्थाश्रम स्वार्थी, अन्यायी, दुराचारी, उद्धत, ज़ुल्मी आदि दुगुर्णों का पोषक होजाता है। उस में स्त्री और बच्चों के प्रति जो ममता के अंश होते हैं वे स्वार्थत्याग के अंश नहीं कहे जा सकते, बल्कि एक प्रकार से उनका सुख ही उसका लाभ है, क्योंकि उन्हें यह अपनी निजू चीज़ समझ कर पोषण करता है; और जब ख़ास उसके शारीरिक स्वार्थ पर आ बनती है तब स्त्री-बच्चों के सुख और स्वास्थ्य की बलि देने में वह ज़रा भी हानि नहीं समझता। जब तक वर्तमान वैवाहिक रूढ़ि इस ही प्रकार चली जायगी तब तक इससे अच्छे परिणाम की आशा रखनी व्यर्थ है। हम ऊपर विवेचना कर आये हैं कि मनुष्य की दुष्ट प्रवृत्तियाँ आधीनता-पराधीनता से ही उत्पन होती है, यदि इन प्रवृत्तियों को अधिक स्वाधीनता न दी जाय तो वे किसी मर्यादा में रह सकती हैं। इसी ही प्रकार जब किसी एक व्यक्ति को बहुत से मनुष्य सम्मान देने लगते हैं, तब उसको आदत हो जाती है कि वह उन सब को दबाता ही रहे-यह हम प्रति-दिन के अनुभव