पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(१२१)


किसी साधारण नियम के अनुसार होना चाहिए-जैसे उदाहरण के तौर पर, जो उमर में सबसे अधिक हो वही सत्ताधीश बनाया जाय। पर क़ायदे-क़ानून से इस प्रकार का निर्णय कभी नहीं किया जाता; क़ायदे की दृष्टि में इस प्रकार के नियम बनाने की आवश्यकता ही सिद्ध नहीं हुई कि, अमुक नियम के अनुसार हिस्सेदारों के हक़ कम या ज़ियादा होने चाहिएँ, या हिस्सेदार आपस में अपने व्यवहार का जो नियम निश्चित करें उनके अनुसार उन्हें न चलने देकर अमुक प्रकार से उन्हें चलाना चाहिए। अनुभव के द्वारा ऐसे नियम की आवश्यकता ही सिद्ध नहीं हुई। किन्तु यह तो स्पष्ट ही है कि विवाह-सम्बन्ध में एक हिस्सेदार को तमाम हक़ सौंप दिये जाते हैं, यदि किसी कोठी के हिस्सेदारों में भी एक को सब सत्ता सौंपने का नियम हो, तो जिन हिस्सेदारों को सत्ताधीश के नीचे रहना पड़ता और उनका जितना नुक़सान होता, उसकी अपेक्षा भी इस सम्बन्ध में अधिक नुक़सान होता है-क्योंकि प्रत्येक हिस्सेदार इस बात में तो स्वाधीन होगा कि जब वह चाहे तब अपना सम्बन्ध न्यारा कर ले। किन्तु स्त्री को इस प्रकार का कोई हक़ नहीं होता, और यदि कोई हक़ हो भी तो, तो पहले उस हक का उपयोग करके देखे, यह और भी ध्यान देने योग्य है।

८-यह तो सत्य है कि जिन बातों का निर्णय रोज़ का रोज़ करना पड़ता है, और जो व्यवस्था निर्णय के लिए रुक

१९