पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(१२२)


नहीं सकती, या जिन में स्वाधीनता पूर्वक काम लेने की आवश्यक ही है ये निर्णय तक नहीं रोकी जा सकतीं, इनके लिए आवश्यक है कि ये एक ही मनुष्य की इच्छा के अनुसार होने चाहिएँ। पर इससे यह सिद्धान्त नहीं निकल सकता कि यह मुख़्तारगीरी सदा सब बातों में एक ही आदमी के हाथ रहनी चाहिए। यदि स्वाभाविक व्यवस्था की ओर देखेंगे तो दोनों के अधिकार सत्ता तक पहुँचते रहने चाहिएँ। प्रत्येक को जो-जो काम सौंपा जाय उस में वह पूर्ण स्वाधीन होना चाहिए; किन्तु उस काम करने की पद्धति या व्यवस्था में कुछ लौट-फेर करना हो तो उसमें दोनी की सलाह होनी चाहिए। प्रत्येक कार्य के स्वामित्व आदि का निश्चय क़ायदे-क़ानून को द्वारा नहीं हो सकता, बल्कि इसका आधार प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता और अनुकूलता पर है। यदि दोनों की इच्छा हो तो जिस प्रकार विवाह-सम्बन्ध से पहले रुपये पैसे की सब बातें निश्चित हो जाती है उस ही प्रकार प्रत्येक के करने योग्य कामों की व्यवस्था भी पहले ही से निश्चित कर डाली जाय-यह हो भी सकता है। साधारगा तौर पर यह नहीं हो सकता कि दोनों को इस प्रकार के निश्चय करने में अमित कठिनाइयाँ हों। किन्तु यदि पुरुष और स्त्री में पहले से ही विषमता होगी तो और बातो में जैसे लड़ाई-झगड़ा बना रहेगा, उस ही प्रकार इस विषय में भी रहेगा। जहाँ ऊपर लिखे अनुसार एक बार उनके