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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१४७

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करने वाले हिस्सेदार जिस प्रकार जवाबदारी के अनुसार विचार कर प्रत्येक के हक़ क़ायम कर लेते हैं, उस ही प्रकार स्त्री-पुरुष जो आजन्म सांसारिक व्यवहारों के हिस्सेदार बनते हैं वे हिस्सेदार व्यापारियों की तरह अपने लिए नियम निश्चित कर सकते हैं। इस विषय में जिनका यह ख़याल है कि स्त्री पुरुष व्यापारियों की तरह नियम निश्चित नहीं कर सकते, उनका मतलब कितना नापायदार है, यह ऊपर की बातों से भली भाँति ज्ञात होगा। उन स्त्री-पुरुषों की बात जाने दीजिये जिन्हें विवाह करको पछताना पड़ा हो, किन्तु बाक़ी के सब स्त्री-पुरुष ऐसी ही व्यवस्था करते हैं। जिन स्त्री-पुरुषों ने विवाह-संबंध में गहरी भूल नहीं की, जिनका सम्बन्ध टूटने ही में विशेष आनन्द न हो, उन्हें छोड़ कर और बाकी स्त्री-पुरुषों के सम्बन्ध देखेंगे तो ऐसा कभी नहीं दीखेगा कि एक ओर तो केवल सत्ताधीशता हो और वैसे ही दूसरी ओर केवल आज्ञापालन हो। इस स्थल पर कदाचित् यह प्रश्न उठाया जायगा कि स्त्री-पुरुषों में मत-भेद होकर पीछे से जो समाधान होता है, उसका कारण यह है कि स्त्री के मन में यह बात बैठी रहने के कारण कि पुरुषों को क़ानूनन हक़ है और उसके बल पर वह अपनी बात ऊँची रख सकता है, इसीलिए उसे नम्र बन कर अन्त में पुरुष की बात प्रधान रखने के लिये लाचार होना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर जो लोग पञ्चों के द्वारा अपने झगड़ों का