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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१४६

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काम और कर्त्तव्य निश्चित हो जायँगे, तब परस्पर के अधिकार भी दोनों की सलाह से सरलता-पूर्व्वक निश्चित हो सकेंगे, किन्तु क़ानून के अनुसार कभी अधिकार निश्चित न होने चाहिएँ। विशेष करके यह व्यवस्था प्रचलित लोक-रूढ़ि के अनुसार ही हो जायगी, और जब उस में आवश्यक परिवर्त्तन करने की ज़रूरत होगी तब दोनों सोच-विचार कर फेरफार कर लेंगे।

९-क़ायदा दो में से चाहे जिसे सत्ताधीश बनावें, किन्तु यह तो प्रत्यक्ष है कि काम-काज का निर्णय विशेष करके बुद्धिमत्ता के आधार पर ही होता है। विशेष करके पुरुष के स्त्री से उमर में बड़ा होने के कारण, उसकी सम्मति पर ही अधिक दबाव होता है; और कम से कम यह प्रकार उस समय तक तो चले हीगा जब तक स्त्री-पुरुष समान आयु, वाले और समान बुद्धि-सम्पन्न न होंगे। दूसरे, स्त्री-पुरुषों में जो प्रत्यक्ष आत्मरक्षा यानी जीविका का उपार्जन करेगा उसकी सम्मति स्वयं अधिक मान्य होगी; इसलिए स्त्री-पुरुषों में जो असमानता देखी जाती है उसका कारण वैवाहिक सम्बन्ध नहीं होता, बल्कि मनुष्य-जाति की साधारण स्थिति है। इस ही प्रकार बुद्धिविषयक विशेषतः (फिर चाहे वह साधारण हो या विशेष) मन को स्थिरता, स्वभाव को उदारता आदि गुणों के कारण एक पक्ष जो उच्चता भोगता है, वह भोगे हीगा। इस समय भी यही दशा है। व्यापार-धन्धे