पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१५८

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ख़याल भी नहीं होता। यह भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मनुष्य-जाति की भावी स्थिति जान लेना सब मनुष्यों का काम नहीं है, इसे संसार के थोड़े से बुद्धिसम्पन्न मनुष्य ही जान पाते हैं। जो पुरुष इन भावी स्थितियों का विचार और मनोभावों का प्रत्यक्ष अनुभव करे, ऐसा तो संसार में कोई कहीं ही होता है; और विशेष करके उस पुरुष को लोगों का अत्याचार सहना पड़ता है। नये ज़माने के शुरू हो चुकने पर भी रूढ़ियों, आचार-विचारों, पुस्तकों और शालाओं के द्वारा मनुष्यों को पुराने विचारों की ही शिक्षा मिलती रहती है। फिर जिस समय नया ज़माना शुरू ही न हुआ हो उस समय तो पुराने आचार-विचारों की मुक्त शिक्षा लोगों को मिलती है-यह स्पष्ट है। किन्तु मनुष्य-जाति का सच्चा गुण यही है कि एक दूसरे के साथ सहानुभूति का व्यवहार करके समानता को उच्च स्थान दिया जाय। दूसरे मनुष्य को हम जितना सम्मान देते हैं उस से अधिक सम्मान ख़ुद अपने लिए मत चाहो। किसी ख़ास प्रसङ्ग को छोड़ कर किसी मनुष्य पर हुकूमत करने की इच्छा मत रक्खो, और वह इच्छा भी उस प्रसङ्ग को पूरा करने के लिए हो; जहाँ तक हो सहवास के लिए ऐसे आदमी चुनो जो सलाह भी दे सकते हों और दूसरे मौके पर जिन्हें सलाह देने की भी ज़रूरत हो; इस प्रकार प्रसङ्ग के अनुसार दोनों को गुरु शिष्य होने का अवसर मिलना आवश्यक है। इस