पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१५९

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प्रकार की योग्यता सम्पादन करने ही में सद्गुणों का विकाश है। वर्त्तमान समय के मनुष्य-समाज में इन गुणों के विकाश होने और बढ़ने के साधन बहुत ही कम है। वर्त्तमान समय का ग्राहस्थाश्रम अनियन्त्रित धारा की मुख्य पाठशाला है, और स्वाधीनता के सगुण सत्ता के दुर्गुणों के साथ घिसटते फिरते हैं। स्वाधीन देशों में नागरिक के अधिकार समानता के तत्त्व पर रचे गये समाज-बन्धन के अनुभव के नमूने हैं, पर अभी तक स्वाधीन नागरिक-जीवनी बहुत कुछ इधर-उधर टकराती है, क्योंकि इस समय के दैनिक व्यवहार का उनके हृदयों पर जो असर होता है, उससे स्वाधीन नागरिकता का विकाश रुकता है।

यह निर्विवाद है कि यदि कुटुम्ब का सङ्गठन आदर्श ढंग पर हो जाय तो ग्रहस्थाश्रम स्वाधीनता के सब अच्छे गुणों की खान बन जाय। तथा अन्य आवश्यक सद्गुणों की शिक्षा भी वहीं से प्राप्त की जा सकती है। कुटुम्ब रूपी पाठशाला में बच्चों को माता-पिता की आज्ञा में रहना और माता-पिता को अपनी सन्तान आज्ञाकारी बनाना आदि विषयों की शिक्षा तो सदा मिलती रहती है; किन्तु इस में कमी यही है कि स्त्री-पुरुषों को एक दूसरे के साथ समान व्यवहार की शिक्षा नहीं है। कुटुम्ब रूपी पाठशाला में इस शिक्षा के होने की आवश्यकता है कि मालिक और मालकिन एक दूसरे के प्रति समान व्यवहार करें, एक दूसरे को प्रेम और