पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१६०

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सम्मान से स्मरण करें। एक के हाथ में अधिकार रहना और दूसरे का केवल आज्ञापालन करना सर्व्वथा उठ जाना चाहिए। दम्पति में प्रत्यक्ष ऐसा सम्बन्ध होना चाहिए। यह सम्बन्ध जब गृहस्थाश्रम में स्थान पावेगा तभी बाहर के व्यवहार और सम्बन्धों में इसकी शिक्षा का प्रचार होगा। स्त्री-पुरुषों की एक दूसरे के प्रति पूज्य बुद्धि तथा परस्पर अनुकरणीय बर्ताव होने ही के कारण बच्चे वैसे आचरण वाले बनेंगे। क्योंकि अपनी अज्ञानवस्था तक माता-पिता की देख-रेख में रहने के कारण, माता-पिता के प्रत्यक्ष आचरण को वे अनुकरण करने योग्य समझते हैं और बाद में वे स्वाभाविक रीति से वैसा ही आचरण रखते हैं। मनुष्य-जाति में जो अनेक प्रकार के सुधार होने लगे हैं, इनका उद्देश मनुष्य को उच्च जीवन के योग्य बनाना

है, और यदि यही है तो नैतिक शिक्षा के द्वारा भी इसकी उन्नति ही होनी चाहिए; किन्तु जो नैतिक नियम मनुष्य-जाति की प्रारम्भिक स्थिति के लिए हो योग्य थे, उन्हीं नियमों का व्यवहार जब तक कुटुम्ब में प्रचलित रहेगा, तब तक मनुष्य-जाति की नैतिक शिक्षा का सुधार सफल होही नहीं सकता-यह निर्विवाद है। जिस मनुष्य का उत्कट स्नेह केवल अति निकट और अधीनस्थों पर ही होगा, उसके हृदय में निवास करने वाली स्वाधीनता की प्रीति किसी समय शुद्ध और उच्च प्रकार की नहीं होगी-वह प्रेम संसार का भूषण नहीं होगा; बल्कि अति प्राचीन या मध्ययुग वाले मनुष्यों

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