पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१७१

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है तब घर के काम-काज करने, सन्तान के पालन-पोषण करने, गृह-शिक्षा देने, गृहस्थी चलाने आदि कामों ही को सब से अधिक पसन्द किया है, यह समझना चाहिए। दूसरे बाहरी कामों में ध्यान देने से उसके इस मुख्य कार्य में हानि आनी सम्भव है, उन कार्यो के कर्त्तव्य से मुक्त होने ही के लिए मानो उसने विवाह किया है। इस प्रवृत्ति-नियम के अनुसार जो व्यवसाय घर से बाहर जाने पर हो सकते हैं या जो घर में बैठे रहने पर भी हो सकते हैं वे दोनों ही वर्ज्य हो जाते है। किन्तु सामान्य नियमों की रचना के समय इस बात का पूरा खयाल रखना चाहिए कि उन नियमों के द्वारा व्यक्ति मात्र के विशेष गुणों का विकाश न रुके और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति बढ़ाने की पूरी स्वाधीनता हो। अर्थात् विवाह के अनन्तर भी यदि किसी स्त्री की बुद्धि किसी अन्य कार्य में विशेष चल सकती हो, तो उसमें प्रवृत्त होने में उसे किसी प्रकार का बन्धन न होना चाहिए, केवल यह व्यवस्था होनी चाहिए कि यदि वैसा करने से गृहिणी के कर्त्तव्य में किसी प्रकार की कमी रहती हो तो उसे अन्य साधनों के द्वारा पूरा किया जाय। सारांश यह है कि, यदि लोगों में स्त्री-पुरुष की समानता का प्रवाह चल पड़े तो ऐसी छोटी- मोटी बातों के लिए नियम बनाने की आवश्यकता ही कभी न आवे, और इसका निर्णय लोगों की राय पर भी छोड़ा जा सकता है।