सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
तीसरा अध्याय।

१-मैं जो पीछे गृहस्थी में स्त्री को पुरुष के समान अधिकार होने का विवेचन कर आया हूँ, वह जिसकी समझ में पूरी तरह से आगया होगा, उसे स्त्रियों की समानता के लिए अन्य उपाय समझाने अर्थात् सबल पुरुष-वर्ग ने जिन उद्योग-धन्धों पर केवल अपना ही अधिकार जमा रक्खा है उनमें स्त्रियों के भी प्रविष्ट होने की आवश्यकता साबित करने में कुछ भी कठिनाई नहीं है। मैं यह मानता हूँ कि गृहकार्यों के लिए स्त्रियों को पराधीन रखने में पुरुष प्रसन्न होते हैं, इसका कारण यह है कि कुटुम्ब में यदि कोई बरोबरी का दावा करे तो अधिकांश पुरुषों से यह सहन नहीं हो सकता। यदि यह बात ऐसी न हो तो अर्थशास्त्र और राजनीति की दृष्टि से प्रत्येक मनुष्य सरलतापूर्वक यह कह सके कि, 'अच्छी आय वाले धन्धों से मनुष्य-जाति के आधे भाग को सर्वथा पृथक रखना, और प्रतिष्ठित-अधिकारों से मनुष्य-जाति के आधे भाग को अयोग्य कह देना-घोर अन्याय है। इस ही प्रकार पुरुष-वर्ग का केवल नीच और मूर्ख व्यक्ति भी जिस अधिकार का हक़दार होने योग्य माना जाय, उस ही अधिकार के लिए स्त्रियाँ जन्म से ही अयोग्य समझी जायँ, और किसी उपाय से वे योग्य बनने के लायक़ ही न समझी