अधिकारों के विषय में सोचेंगे तो जिस देश की राज्यव्यवस्था में, ऐसे नियम बनाये गये हों कि अयोग्य मनुष्य उन अधिकारों तक पहुँच ही न सकें-तो इससे अयोग्य स्त्रियाँ भी उन तक न पहुँच सकेंगी। और यदि ऐसे नियम न हों-तथा अयोग्य मनुष्य उत्तरदायित्व के अधिकारों पर जा पहुँचते हों, तो वे चाहे पुरुष हो या स्त्री-दोनों समान है-उस दशा में अयोग्य स्त्रियों से विशेष हानि ही क्या है। इसलिए जब
तक यह स्वीकार किया जायगा कि सार्वजनिक अधिकार भोगने और कर्त्तव्य पूरा करने में थोड़ी-बहुत भी योग्य स्त्रियाँ निकलनी सम्भव है, और जिस क़ायदे को अपवाद बना कर वे रोकी जायँगी वह सार्थक नहीं हो सकता। यद्यपि स्त्रियों की योग्यता का सवाल प्रस्तुत वादविवाद के निर्णय में किसी
प्रकार उपयोगी या सहायक नहीं हो सकता, फिर भी यह प्रश्न निरुपयोगी नहीं हो सकता। क्योंकि स्त्रियों की बुद्धि के विषय में यदि निष्पक्ष विचार किया जाय, और लोगों की इस विषय में जो कुछ ख़ामख़याली है वह सुधरे, तो बहुत सी बातों में जो स्त्रियाँ अपात्र समझी जाती हैं, इसके खण्डन में मैं जो दलीलें पेश करना चाहता हूँ उनका बहुत कुछ समर्थन हो। इस ही प्रकार यह सिद्ध करने में भी बहुत
सहायता मिले कि व्यावहारिक बातों में विशेष लाभ होगा। इसलिए अब यही विचार करें।
४-मानसशास्त्र की सहायता से जो बातें सिद्ध हो