पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१८७

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इन दोनों राजपुत्रियों ने राज को जिस योग्यता से चलाया, उतनी योग्यता उस समय के और किसी राजा ने नहीं दिखाई। सम्राट् पाँचवाँ चार्ल्स अपने समय का बुद्धिमान् और प्रतापी राज्यकर्त्ता था। उसके दर्बार में बुद्धिमान् और नीतिकुशल मन्त्री थे। उसका मन भी इतना निर्बल न था कि अपने शारीरिक स्वार्थ के लिए वह अपने राज्य को किसी प्रकार का धक्का देता। इतना होते हुए भी उसने अपने कुटुम्ब की दो राजकुमारियों को नेदर्लेण्ड प्रान्त की सूबेदारी दी थी, और अपने राज्यकाल-भर में उसने उन्हें अदल-बदल कर क़ायम रक्खा। (पीछे यह अधिकार एक तीसरी राजकुमारी को मिला।) दोनों का कार्य बहुत ही योग्यता वाला निकला, और उनमें आस्ट्रिया को मार्गारेट तो अपने समय की प्रसिद्ध राजनीति जानने वाली हुई है। यह तो इस प्रश्न का एक बाज़ू है। अब इसे दूसरी ओर से देखें। स्त्रियों के राज्य में वास्तविक राजसत्ता पुरुषों के हाथ में होती है, इस कहावत का अर्थ, "राजाओं के राज्य में वास्तविक राजसत्ता स्त्रियों के हाथ में होती है" के समान ही है या इसका और भी कोई मतलब है? क्या लोग यह कहना चाहते हैं कि राजकार्य चलाने के लिए स्त्रियाँ जिन पुरुषों को पसन्द करती हैं, वे और कोई नहीं बल्कि जिन से उन्हें विषय-सुख प्राप्त हुआ हो वे ही होते है? इस विषय में मेरा कहना यही है कि, ऐसे उदाहरण कहीं भूले-भटके ही मिल