पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/१८६

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है। हमें भी कोई न कोई विषय उठा कर वाद-विवाद करना है, इसलिए इससे ही प्रारम्भ करना अच्छा है-इसलिए सब से पहले हमें यह खोज निकालना है कि इस कथन में सत्य का अंश कितना है। सब से पहले तो निश्चय-पूर्व्वक यह कहता हूँ कि इस कथन में सत्यताका लेश भी नहीं है-राजाओं के राज्य में वास्तविक राजसत्ता स्त्रियों के हाथ में नहीं होती। यदि ऐसे दृष्टान्त कभी-कभी निकल भी आते हों तो वे अपवाद रूप हैं, तथा राजाओं की निर्बलता के कारण उन पर स्त्रियों का अधिकार होने से जितने राज्यों के ख़राब होने के दृष्टान्त हैं, उतने ही दृष्टान्त पुरुषवर्ग के मर्ज़ीदानों द्वारा राज्य ख़राब होने के मिलते हैं। अर्थात् राजा के निर्बल होने पर स्त्री का उस पर जितना अधिकार होता है, उतना ही पुरुषों का भी होता है। जो विषयासक्त और स्त्रीलम्पट होता है उसका राज्य-प्रबन्ध अच्छा होना तो सम्भव ही नहीं। फ्रान्स देश के इतिहास में दो उदाहरण ऐसे मिलते हैं जिन में राजाओं ने अपनी मरज़ी से स्त्रियों के हाथ में राज्य को लगाम सौंपी। उनमें एक आठवाँ चार्ल्स, जिसने छोटे होने के कारण राजभार अपनी मां को सौंपा; पर ऐसा करने में इसने अपने बाप ग्यारहवें लुई का कहना किया था, जो अपने समय का सब से अधिक बलवान् राजा था। दूसरा राजा सेंट लुई था, जिसने राजभार अपनी बहन को सौंपा था। शार्लमैंन राजा के पीछे, उसके समान बुद्धिमान् और प्रतापी और कोई नहीं हुआ।