दीवार ऐसी ही समझ की नींव पर उठाई गई हो-तो केवल ऐसी मानसिक सृष्टि पर स्त्रियों को बिल्कुल विश्वास नहीं होता। इससे स्त्रियों के विचारों को अधिक उदार और विशाल बनाने के लिए पुरुषों के विचार जितने उपयोगी हैं, उतने ही उपयोगी स्त्रियों के विचार तत्त्वचिन्तन में लीन होने वाले पुरुषों के विचारों को व्यवहारोपयोगी बनाने में हैं। जब विचारों की गम्भीरता के विषय में विचार करते हैं, तब पुरुषों की समानता में स्त्रियाँ कम हैं-इस में सन्देह है-अर्थात् विचार-गाम्भीर्य में स्त्रियाँ पुरुषों से कम नहीं है।
१०-इस प्रकार विमर्श या तत्त्वचिन्तन में जैसे स्त्रियों के मानसिक विशेष गुण उनके सहायक हो सकते हैं, वैसे ही चिन्तन के परिणाम में जो सिद्धान्त निश्चित होते है उन्हें व्यवहार में लाते समय भी स्त्रियों के ऊपर कहे हुए विशेष गुण उन्हें पूरी सहायता देते हैं। क्योंकि इस विषय में पुरुषों के हाथों से जिन भूलों का होना सम्भव है, वे भूलें ऊपर कहे हुए विशेष गुणों के कारण स्त्रियों से बहुत कम होनी सम्भव हैं। ऐसे प्रसङ्ग पर एक ही मार्ग का अनुसरण नहीं किया जाता। किसी भी साधारण नियम को किसी विषय पर प्रचलित करने से पहले, उसकी ख़ास बातें बारीकी से जाँची जाती हैं, या खास प्रसङ्गों पर नियम में लौटफेर करना पड़ता है। और ऊपर बताये हुए गुणों के कारण किसी बात में पैर बढ़ाने से पहले आस-पास के संयोगों पर विचार करने की