हो जाते हैं कि छोटे-छोटे कारणों के असर से भी उन में विकार पैदा हो जाता है-तथा ऐसे काम जिन में दीर्घकाल तक मन और शरीर लगाने की आवश्यकता होती है, ऐसी शारीरिक या मानसिक शक्ति उन में शेष नहीं रहती। किन्तु जिन स्त्रियों को अपने उदर निर्व्वाह के लिए मिहनत-मजदूरी करनी पड़ती है उन में ऐसी कमज़ोरी बहुत कम देखी जाती है। यह विकार उन में भी प्रविष्ट हो जाता है जिन्हें एक
अनारोग्य स्थान पर बैठे-बैठे विवशता में काम करना पड़ता है। जिन स्त्रियों को छुटपन से अपने भाइयों के समान आरोग्यवर्धक व्यायाम और खुली हवा में घूमने-फिरने का लाभ मिलता है, और पीछे से भी जिन्हें स्वच्छ हवा और आवश्यकता के अनुसार शारीरिक व्यायाम करने का अवसर मिलता रहे-वे स्त्रियाँ शारीरिक या मानसिक परिश्रम की योग्यता नहीं खो बैठतीं-तथा ऊपर वाले दोष भी उन में नहीं आते। यह ठीक है कि स्त्रियों तथा पुरुषों में बहुतों की शारीरिक गठन ही इस प्रकार की होती है कि उनका मन बड़ी सरलता से झटपट विकार के अधीन हो जाता है, और इस प्रकार की मानसिक दुर्बलता उन पर बहुत बड़ा असर करती है। शारीरिक विशेष रोग के अनुसार यह दोष भी सन्तान प्रति सन्तान पीढ़ियों तक जाता है और कन्या तथा लड़के में समान रूप से उतरता है; यह भी हो सकता है कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में विशेष हो। मैं इसे स्वीकार कर रखता हूँ
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