सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( १९१ )


में भी स्त्रियों ने विचार कर लिया है-ऐसे बहुत से उदाहरण हमारे सुनने में आते हैं। पुरुष जिस को करता है और जब उससे फुरसत पाता है तब उसका मन विश्राम करता है अर्थात् शून्य रहता है किन्तु स्त्री का मन किसी समय विश्राम नहीं करता। किसी न किसी छोटी-मोटी बात के ही विचार में उसका मन लगा रहता है। यदि स्त्रियों का धन्धा देखेंगे तो यही होगा कि, एक समय में उन्हें अनेक बातों की ख़बरगीरी करनी पड़ती है; इसलिए जैसे सांसारिक व्यवहार किसी समय नहीं रुकते वैसे ही स्त्रियों का मन भी कभी ख़ाली नहीं रहता।

१३-बहुतों का कहना यह भी है कि पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा बुद्धि अधिक होती है, इसे शरीर-शास्त्र के द्वारा भी सिद्ध किया जाता है-पुरुषों के मस्तिष्क स्त्रियों के मस्तिष्कों से बड़े होते हैं। इस विषय में सब से पहले तो मेरा कहना यही है कि, यह बात ही सन्देह-युक्त है। अभी तक इस बात का पूर्णरूप से निश्चय नहीं हुआ कि स्त्रियों के मस्तिष्क पुरुषों के मस्तिष्क से छोटे होते ही हैं। यदि यह अनुमान इस बात पर बाँधा गया हो कि स्त्रियों के शरीर पुरुषों के शरीर से कुछ छोटे होते हैं, तो इस मार्ग से चलने पर तो इसका परिणाम बहुत ही विचित्र होगा। इस नियम के अनुसार लम्बे-चौड़े शरीर वाले लम्बे-पूरे आदमी छोटे शरीर वाले आदमियों से ज़ियादा अकलमन्द होने चाहिएँ; और हाथी, मगर-मच्छ या व्हेल मछली अकलमन्दी में सब