पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२२५

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जिसके कारण तत्त्वज्ञान के इतिहास में किसी नवीनता का दर्शन हो, इस ही प्रकार कला-विषय पर भी उनके द्वारा कोई नवीनता नहीं दिखाई देती। स्त्रियों की ग्रन्थ रचना विशेष करके संसार के परिचित विचार-समुदाय पर ही होती है; उनकी कृतियाँ प्रचलित नमूनों से अधिक भिन्न नहीं होतीं। अर्थात् स्त्रियों की रचना में सब से बड़ी यही कमी है। क्योंकि ग्रन्थ-रचना, विचार-संकलन, और शैली की सुन्दरता आदि में स्त्रियाँ पोछे नहीं रहतीं; वस्तु-संकलन और ग्रन्थ-रचना में देखेंगे तो हमारे ग्रन्थकार स्त्रीवर्ग के ही मालूम होंगे। अर्वाचीन ग्रन्थों में विचार ‌अङ्कित करने की उत्तम शैली देखेंगे तो मेडम स्टेडल की मालूम होगी। इस ही प्रकार मेडम सेण्ड की गद्य-रचना में ऐसा विलक्षण चमत्कार दिखाई देता है कि, उसके ग्रन्थों को पढ़ते समय प्रसिद्ध सङ्गीतशास्त्री हेडन या मोज़ार्ट के मधुर गीत सुनने के समान हृदय प्लावित हो जाता है। लेकिन स्त्रियों की रचना में उच्च प्रतिभा-शक्ति और अपूर्व कल्पना का अभाव है। अब हमें इस पर विचार करना चाहिए कि इस विषय में स्त्रियों के पिछड़ जाने के कारण कौन-कौन से हैं।

१९-विचार करते हुए सब से पहले हमारी नज़र उस अतीत काल पर पहुँचती है जब मनुष्य पहले के अध्ययन या सञ्चित ज्ञान की सहायता के बिना केवल बुद्धि पर दीर्घगामी सत्य की मीमांसा कारते थे, उस सुधार के प्रारम्भ काल में