प्रसिद्ध कवि की तुलना में इन दो स्त्रियों के नाम आये हैं; इससे स्पष्ट है कि इनकी बुद्धि और योग्यता उच्च कोटि की थी; एस्पेशिया नामक स्त्री ने तत्त्वज्ञान पर कोई ग्रन्थ नहीं लिखा, किन्तु यह निश्चित है कि साक्रटीस जैसा उद्भट विद्वान् और सुप्रसिद्ध तत्त्वज्ञानी उसके पास शिक्षा लेने जाता था, और साक्रटीस ने स्थान-स्थान पर इस बात को स्वीकार किया है कि, मुझे उससे बहुत ज्ञान प्राप्त हुआ है। यह बात इतिहास में प्रसिद्ध है।
१८-ग्रन्थ-रचना के विषय में तथा कलाओं के सम्बन्ध में यदि हम आधुनिक स्त्रियों की तुलना पुरुषों से करें तो उनमें एक ही कमी मालूम होती है; यद्यपि वह कमी बड़े महत्त्व की है। अर्थात् स्त्रियों की रचनाओं में नवीनता और अपूर्वता बहुत कम देखी जाती है। यद्यपि सम्पूर्ण नवीनता का तो कभी अभाव होता ही नहीं, क्योंकि प्रत्येक मानसिक कृति में-यदि उसमें कुछ भी दम होगा तो कुछ न कुछ तो नवीनता ही होगी। क्योंकि आख़िर तो वह एक बुद्धि की कल्पना का ही परिणाम होता है, किसी पुरानी कृति का केवल अनुकरण मात्र तो होता ही नहीं। स्त्रियों के द्वारा लिखे हुए ग्रन्थों में नये भाव-अर्थात् दूसरों के चोरी हुए भाव नहीं, बल्कि अपने देखे हुए या निजी मनोविकारों से उत्पन्न हुए भाव बहुतायत से मिलते हैं। किन्तु उनका ऐसा कोई नवीन या विशाल विचार नहीं दिखाई देता