पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२२८

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पर्शियन आदि भाषाओं का अभ्यास करने का अवसर स्त्रियों को नहीं मिला। व्यवहार में भी हम देखते हैं कि जिसकी बुद्धि शिक्षा के द्वारा संस्कृत नहीं होती, वह अपने जिस काम को नई खोज की दृष्टि से देखता है उसकी क़ीमत कुछ नहीं होती। पीछे से उसे मालूम होता है कि यह खोज तो बहुत समय पहले अमुक मनुष्य ने की थी और तब से अब तक उसमें अनेक सुधार भी हो गये हैं। वास्तविक खोजी बनने के लिए मनुष्य को बड़े भारी ज्ञान और सामग्री की आवश्यकता है, यदि यह परीक्षा करनी है कि स्त्रियों में खोज-शक्ति है या नहीं, तो पहले उन्हें स्वाधीनता-पूर्वक पूर्ण ज्ञान और सामग्री, प्राप्त करने दो। क्योंकि प्राचीन अनुभव से जो अनुमान किया जाता है वह निरूपयोगी होता है।

२०-कभी-कभी यह भी होता है कि कोई मनुष्य किसी खास विषय पर सविस्तर विचार या यथार्थ अभ्यास न करने पर भी आन्तरिक कल्पना ही से किसी मार्मिक विचार को निकाल लेता है; वह दूसरे को अपनी कल्पना समझा सकता है, किन्तु उसे कारण सहित सिद्ध करना नहीं आता। किन्तु जब वह कल्पना परिपक्व हो जाती है तब उसके ज्ञान-भण्डार में विशेष वृद्धि होती है। ऐसी कल्पनाएँ बहुतों के दिमाग़ में पैदा होती हैं, किन्तु जब तक कोई सुशिक्षित विद्वान् उस कल्पना को कसौटी पर चढ़ाकर शास्त्रीय व्यवहार का स्वरूप नहीं देता, तथा ज्ञान के भण्डार में उसका