पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२३८

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अक्ल यदि किसी कला, साहित्य, या पदार्थ विज्ञान या और किसी शास्त्रीय विषय के पढ़ने में लगाई जाय तो उन विषयों के इतिहास में उनका नाम उच्च श्रेणी में प्रतिष्ठित हो, इस में शक नहीं*[१]। यह बात तो निर्विवाद है कि उनकी बुद्धि और समय का इतना बड़ा भाग इस काम के पीछे ख़र्च होता है कि उन्हें अन्य मानसिक व्यवसायों के लिए समय ही नहीं मिलता। ऊपर कहे हुए प्रतिदिन के व्यावहारिक छोटे-बड़े


  1. * "जिस योग्य मानसिक शक्ति के कारण मनुष्य को किसी कला की योग्यता-अयोग्यता के विषय में यथार्थ कल्पना प्राप्त होती है, उस ही मानसिक शक्ति का उपयोग वस्त्रालङ्कार या शरीर सजाने के काम में होता है। वस्त्रालङ्कार का हेतु यद्यपि छोटा होता है, किन्तु इसके स्वरूप का मूल तो एक ही प्रकार का होता है। यह सिद्धान्त पोशाक की रुचि से और भी अधिक स्पष्ट होता है। इसे सब स्वीकार करते हैं कि पोशाक में अभिरूचि या रसज्ञता का अंश होता है। पोशाक के न्यारे-न्यारे अङ्गों के कद, और माप समय-समय पर बदलते रहते हैं। छोटे भाग बड़े होते हैं और जो संकुचित होते हैं वे बढ़ते हैं। किन्तु उनका सामान्य स्वरूप तो बना ही रहता है, उसका तो ढाँचा नही बदलता। पोशाक में जो कुछ लौट-फेर होता है, वह उसके भिन्न-भिन्न भागों में घटता है, किन्तु वह स्वरुप तो बना रहता ही है। पोशाक के लौट-फेर और काट-छाट में जो मनुष्य सुधार करता है तथा पोशाक पहनने में जिस व्यक्ति की रुचि उच्च प्रति की है, यदि ये दोनों व्यक्ति अपनी इस ओर की कल्पना-शक्ति का उपयोग अन्य विशेष उपयोगी कामों में करें तो कला-कौशल-कारीगरी के बड़े बड़े कामों में भी उनकी उस बुद्धि का विलक्षण चमत्कार अवश्य दीखे। अर्थात् उनकी उच्च प्रकार की रसज्ञता और अभिरुचि इस में भी प्रकट हो, इस में कोई शक नहीं।" Sir Joshua Reynolds' Discourses, Disc. VII.

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