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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२३७

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होता है, तो उसके सिर अपने कुटुम्ब के बहुत से कर्त्तव्य होते हैं। अर्थात् सगे-सम्बन्धियों से मिलना, इष्ट सम्बन्धियों के यहाँ मिलने-जुलने जाना, दस औरतों में बैठ कर शिष्टाचार की बातें करनी, गाने बजाने में शामिल होना, पत्रव्यवहार करना आदि लौकिक व्यवहार के सैंकड़ों कर्त्तव्य उनके सिर होते हैं; और गृह-व्यवस्था का काम स्त्रियों के सिर जितना ही कम होता है उतना ही इस प्रकार का भार उन पर अधिक होता है। यह सब समाज ने उन पर आवश्यक और तल्लीन कर डालने वाला कर्त्तव्य डाला है, नियमित सब काम कर चुकने पर भी उन्हें यह तो करना ही पड़ता है। अपने आप को सुन्दर और आकर्षक बनाने के लिए माँग-चोटी, शृङ्गार-सजावट, टीप-टाप, बोलने-चालने में सभ्यता आदि बातों में स्त्रियो को प्रवीण बनना पड़ता है। बड़े घरानों की और अपने आप को होशियार कहाने वाली प्रत्येक स्त्री को अच्छा शिष्टाचार और बोलने-चालने का उत्तम ज्ञान प्राप्त करने में अपनी बुद्धि का सब से बड़ा हिस्सा ख़र्च करना पड़ता है। इस बात के बाहरी स्वरूप को ही यदि हम देखेंगे तो मालूम होगा कि जो स्त्री अपनी पोशाक ठीक रखना ज़रा भी महत्त्व की बात समझती होगी (ठीक रखने का मतलब चमक-दमक वाली पोशाक नहीं, बल्कि साफ-सुथरी) उसे और इस प्रकार की जब स्त्रियों को अपनी पोशाक के सम्बन्ध में और अपनी सन्तान की पोशाक के सम्बन्ध में जितनी अक़्ल लगानी पड़ती है, वही