उसके मालिक पर शिथिलता का असर ज़ियादा होता है। दूसरों पर अनियन्त्रित अधिकार भोगने वाले मनुष्यों की नीति जैसी बिगड़ जाती है वैसी अधिकार की दाब में रहने वालों की नहीं बिगड़ती। अर्थात् बिना किसी अङ्कुश के दूसरों पर मनमानी करने वालों की नैतिक प्रकृति जैसी शिथिल होती है वैसी दूसरे के अधिकार में रह कर दाब सहने वाले की नहीं होती। और फिर वह सत्ता चाहे मनमानी हो या कुछ नियमों से बँधी हो, पर उस में विशेष हेरफेर नहीं होता। यह कहा जाता है कि, फौज़दारी कचहरी में पुरुष-अपराधियों की अपेक्षा स्त्रियाँ बहुत ही कम जाती हैं। जेलखाने में भी स्त्री-अपराधियों की संख्या कम होती है। प्रत्येक जाति के ग़ुलामों के विषय में भी यही बात कही जाती है। जो आदमी दूसरों के दबाव में होते हैं वे बार-बार कुसूर नहीं कर सकते, और यदि वे कुसूर करते है तो अधिकांश या तो
अपने मालिक के कहने से या अपने मालिक के फ़ायदे के लिए। साधारण मनुष्यों की बात तो एक ओर रहने दो, पर रात-दिन मनुष्य स्वभाव का अनुभव करने वाले विद्वान् भी बिना कुछ सोचे-विचारे स्त्रियों की मानसिक प्रवृत्ति को नीचा स्थान देते हैं और उनकी नैतिक प्रवृत्ति की प्रशंसा करते हैं। इससे यह साफ़ समझ में आता है कि, सामाजिक संयोग मनुष्य की प्रकृति में कितना लौट-फेर कर डालते हैं-इस ओर लोग कितनी लापरवाही दिखाते हैं।