पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२५२

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चौथा अध्याय।

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१-अब केवल एक ही प्रश्न का निर्णय करना बाक़ी है। यह प्रश्न पहले प्रश्नों से किसी प्रकार कम नहीं है, क्योंकि अब तक के प्रमाणों और दलीलों से जिन प्रतिपक्षियों के विचार कुछ ढीले पड़े होंगे, वे इस प्रश्न को आग्रह-पूर्वक उठावेंगे। यह प्रश्न है:-अपने प्रचलित रीति-रिवाजों में फेरफार या संशोधन करने से किन-किन फ़ायदों की सम्भावना है? यदि स्त्रियों को पूरी स्वाधीनता देदी जाय तो क्या मनुष्य-जाति की हालत में कुछ सुधार होना मुमकिन है? और यदि कोई लाभ होना सम्भव न हो, तो लोगों के मन में बिना कारण क्षोभ पैदा करने से और केवल कल्पित हक़ के नाम से समाज में खलबलाहट मचाने से क्या फ़ायदा?

२-मैं समझता हूँ कि प्रचलित विवाह-पद्धति के फेरफार करने में तो कोई ऐसा प्रश्न उठावेगा। पर एक-एक पुरुष के अधिकार में एक-एक स्त्री के सौंप देने से जो सङ्कट, दुराचार और अनेक प्रकार के अनर्थों के असंख्य उदाहरण हमारे देखने में रोज़ आते हैं, उनकी ओर से आँखें मींचने