पर काम नहीं चल सकता। जिन लोगों को विचार करने की आदत नहीं होगी या जो शुद्ध अन्तःकरण वाले नहीं होंगे वे, जितने नीच से नीच उदाहरण होंगे या जितने प्रकाश में आ सके होंगे-केवल उन्हीं की गिनती करेंगे, और फिर यह कहेंगे कि ऐसी बातें बुरी अवश्य हैं; किन्तु ऐसा तो कोई मनुष्य न होगा जो इन उदाहरणों के अस्तित्त्व को, या इनकी नीचता को स्वीकार न करे। इसके साथ ही यह बात भी निश्चित है कि जब तक पुरुषों के हाथ में अधिकार बने रहेंगे, तब तक उन अधिकारों पर चाहे जितने अङ्कुश रखे जायँ,-किन्तु अधिकारों के दुरुपयोग को वे अङ्कुश रोक ही न सकेंगे। फिर स्त्रियों का अधिकार केवल सब प्रकार से सभ्य और सज्जनों को ही नहीं दिया जाता; बल्कि एक-एक आदमी
उस अधिकार का हिस्सेदार समझा जाता है और उसे वह भोगता है। जङ्गली से जङ्गली और दुष्ट मनुष्य भी इस अधिकार से ख़ाली नहीं रहता। इस अधिकार पर लोकमत को छोड़ कर और किसी का अंकुश नहीं होता, और ऊपर कहे हुए नराधम मनुष्यों को तो अपने वर्ग से बाहर वालों की कुछ परवा ही नहीं होती; ऐसे नीच से नीच और दुष्ट मनुष्यों से ऐसी आशा रखना व्यर्थ है कि वे ऐसे अपने
अधीन प्राणी पर अत्याचार न करें, जिसे क़ायदे और समाज ने उन्हें सौंप दिया हो और जिसके नीच व्यवहार की शिकायत सुनने के लिए कोई तैयार न हो। उनसे यह आशा रखनी
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