उसके भविष्य-जीवन पर कैसा होगा, इसका ज़रा विचार करो! संसार भर की जिन स्त्रियों को वह अपने से नीची समझता है और अपने तईं उनपर अधिकार भोगने का हक़दार समझता है उनमें हज़ारों-लाखों स्त्रियों ऐसी होंगी जो उससे सैकड़ों और हज़ारों गुणी अधिक बुद्धिमती और होशियार होंगी। उसे प्रति दिन और प्रतिपल इसका अनुभव भी होता रहता है। यद्यपि वह अपनी उमर भर एक ही स्त्री की सलाह के अनुसार चला करता है फिर भी, यदि वह सचमुच मूर्ख होता है तो यही मानता है कि,-"इसमें मेरे बराबर अक्ल और मेरे बराबर समझ हो ही कहाँ से सकती है"—और यदि वह मूर्ख नहीं है तो परिणाम इससे भी ख़राब होता है, क्योंकि उसे यह ज्ञान होता है कि स्त्री मुझ से अधिक होशियार है, पर वह मानता है कि यह मुझ से ज़ियादा होशियार है तो इससे क्या हुआ? इस में चाहे जितनी बुद्धि हो, पर सदा मैं इसके ऊपर रहने का हक़दार हूँ और यह मेरी आज्ञा में रहने के लिए क़ानूनन बँधी है! ऐसी समझ का परिणाम उसके बर्ताव पर कैसा होगा, सो सहज ही समझा जा सकता है। सुशिक्षित श्रेणीवाले मनुष्यों को भी इस का ज़रा भी ख़याल नहीं होता कि पुरुषों के सब से बड़े भाग में इस समझ की जड़ कितनी गहरी होती है। क्योंकि कुटुम्ब के शिक्षित और समझदार आदमी इस बात का बड़ा ख़याल रखते हैं कि, स्त्री-पुरुषों की असमानता जितनी हो सके
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