पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२५६

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४-इसके उत्तर में मेरा सब से पहले तो यही कहना है कि मनुष्यों के सब प्रकार के सम्बन्धों में सब से अधिक व्यापक और सार्वत्रिक जो स्त्री-पुरुषों का सम्बन्ध आजतक अन्याय की नींव पर चला आ रहा था वह मिट कर न्याय की भित्ति पर स्थापित होगा—पहला फ़ायदा तो यही है। यह व्यवस्था मनुष्य-समाज के लिए कितनी कल्याणकर और हितदायक होगी—इसे समझने के लिए बड़ी भारी विवेचना या उदाहरणों की आवश्यकता नहीं हैं। "अन्याय के स्थान पर न्याय का राज्य होगा"-इस वाक्य के नैतिक रहस्य को जो मनुष्य समझता होगा वह इसके विशद करने को नहीं कहेगा। मानवी स्वभाव में जो स्वार्थ-साधक प्रवृत्तियाँ हैं, अन्याय के द्वारा मतलब निकाल लेने की जो आदत है, तथा अपने आप को जो संसार से ज़ियादा अक्लमन्द समझने का अहंभाव है-इन सब का मूल या उत्पत्ति-स्थान और इन भावों का पोषण करने वाला और कोई नहीं,—केवल स्त्री-पुरुषों का वर्तमान ढँग का सम्बन्ध है। मान लो कि, कोई लड़का नादान, नासमझ और मूर्ख हो पर बचपन से ही उसके मन में ऐसी बातें भर दी जायँ कि, "मुझ में ज़रा भी लियाक़त नहीं है, फिर भी मैं पुरुष-कोटि में जन्म होने के कारण मनुष्य-जाति के बिल्कुल आधे भाग से—यानी सम्पर्ण स्त्री-वर्ग से अधिक अच्छा और श्रेष्ठ हूँ, और प्रत्येक स्त्री का अधिकार भोगने का हक़दार हूँ" तो ऐसे विचारों का असर