कम होती है। इस प्रकार मनुष्य-जाति की आधी बुद्धि जो व्यर्थ पड़ी रहती है, उस के बन्धनमुक्त होने से समाज के उपयोग में आने वाली बुद्धि-शक्ति की जो वृद्धि होगी, उस में से ऊपर कही हुई उपयोग-शक्ति घटानी चाहिए, यदि इस बात में हठ पकड़ा जाय, तो मुझे भी कहना चाहिए कि, दूसरी ओर स्पर्द्धा या योग्यतम की जीत के अनुसार—इसे ही दूसरे शब्दों में कहें तो अपने आप को स्त्रियों से अधिक योग्य बताने से पहले, पुरुषों को उस योग्यता के सम्पादन करने की जो ज़रूरत होगी, इस के कारण पुरुषवर्ग की बुद्धि को जो प्रोत्साहन या उद्दीपन मिलेगा—वह कम फ़ायदा नहीं होगा—उसे भी फ़ायदों में गिनना चाहिए।
७-इस प्रकार मनुष्य-जाति के समग्र बुद्धि सामर्थ्य में और विशेष कर के उस के काय्र्यों को योग्य रीति से चलाने वालों की बढ़ती में जैसी वृद्धि होगी वह ऊपर बताई गई है। पहले तो स्त्रियों को जैसी शिक्षा अब मिल रही है इस से ऊँची मानसिक शिक्षा मिलेगी, और उस शिक्षण-पद्धति में पुरुषों की शिक्षापद्धति के साथ ही साथ सुधार होता जायगा। इस के कारण स्त्रियाँ उसी वर्ग वाले पुरुषों के समान योग्य होंगी और व्यापार-धन्धे तथा सार्वजनिक कामकाजों में, और तत्त्वचिन्तन आदि गूढ़ विषयों में सब प्रकार से पुरुषों के समान अपनी बुद्धि का गम्भीर उपयोग कर सकेंगी—और वे भी पुरुषों के बराबर उत्साहित होंगी। पुरुषवर्ग वाले व्यक्ति