जैसे संसार के थोड़े से नामाङ्कित व्यक्तियों के विचार समझने की ताक़त रखते हैं, और उन के बड़े-बड़े कामों की क़ीमत समझने के अलावा ख़ुद भी बड़े-बड़े काम करने और नये विचार प्रकट करने की शक्ति रखते हैं, तथा ऐसे व्यक्तियों को अपना ज्ञान बढ़ाने और अपनी बुद्धि का विकाश करने की जैसी अनुकूलता समाज की ओर से दी जाती है-जितने साधन सुलभ किये जाते हैं, उतनी ही अनुकूलता और उतने ही साधन स्त्री-वर्ग की ओर से बुद्धिमती स्त्रियों को भी मिलने लगेंगे। इस प्रकार स्त्रियों के बुद्धि-व्यवसाय से मनुष्य-जाति को दुगना लाभ होगा। एक तो उनकी शिक्षा पुरुषों की शिक्षा के बराबर आ पहुँचेगी, दूसरे एक की शिक्षा के सुधारों का लाभ दूसरों को भी मिलता रहेगा। यदि ऐसे होने वाले लाभों को एक ओर छोड़ देवें तब भी स्त्री-पुरुष का भिन्नभाव दूर करने से, स्त्रियों की मानसिक और नैतिक
स्थिति में जो नवीनता आ जायगी, वह शिक्षा की दृष्टि से देखते हुए बहुमूल्य है। विचार और व्यवसाय के बड़े-बड़े विषय तथा सार्वजनिक हित की सब बड़ी बातों में, जो केवल पुरुषों ही के लिए उपयोगी हैं और स्त्रियों के लिए जिनका दरवाज़ा बन्द है-तथा स्त्रियों की ऐसी समझ बना डाली गई है कि इस से उन्हें कोई सरोकार ही नहीं है—यदि यह समझ नष्ट हो जाय तो केवल इतनी ही बात से कितना लाभ
होना सम्भव है? यदि प्रत्येक स्त्री की आँखों के आगे का
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