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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२७६

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होता है और इसलिए उनके आचार-विचारों को किसी ख़ास ओर झुकाने में वह शिक्षा कुछ भी कामयाब नहीं होती। निरुपाय होकर मुझ साफ़ कहना पड़ता है कि जीवन में निस्स्वार्थ बर्ताव रखने की शिक्षा उन्हें नहीं दी जाती अर्थात् उन कामों पौर व्यवसायों में शारीरिक और मानसिक शक्ति लगाने की शिक्षा नहीं दी जाती जिन में प्रत्यक्ष रीति से कुटुम्ब का लाभ होना सम्भव न हो—स्त्रियों की इस दूषित शिक्षा के विरुद्ध बहुत कम उदाहरण देखे जाते हैं। इसका परिणाम सम्पूर्ण मनुष्य-जाति के लिये हानिकारक होता है। ऐसी दूषित शिक्षा द्वारा शिक्षित स्त्रियों के सहवास से सार्वजनिक गुणों के विकाश में रुकावट खड़ी होती है।

११-जब से स्त्रियों का क्षेत्र विस्तृत होने लगा है और लगातार स्त्रियाँ सार्वजनिक कामों में भाग लेने लगी हैं तभी से समग्र प्रजा के लिए जो नीति का झुकाव है उसमें उनका भी हाथ दीखने लगा है। आज-कल के योरप के लोगों के जो दो मुख्य जीवन-व्यापार हैं, उन में स्त्रियों का प्रभाव साफ़ मालूम होता है। उन दो में से एक तो युद्ध-पराङ्मुखता अर्थात लोगों की युद्ध से अश्रद्धा और दूसरा परोपकार या परमार्थ पर प्रेम। इन दोनों प्रवृत्तियों को उत्तम न होना कोई नहीं कह सकता, तथा इन प्रवृत्तियों को स्त्रियों की ओर से विशेष उत्तेजना मिलती है, किन्तु स्त्रियाँ इस प्रवृत्ति को बहुत बार ऐसी दिशा में ले जाती हैं कि एक